अपने आपको पतित समझना सबसे गिरी हुई बात हैजैसा हम अपने बारे में सोचेंगे वैसा हम बनते जायंगे हमारे भीतर यह बात बहुत गहरे में बैठ गई है की हम कमजोर है , इसलिए हम सहारा खोजते रहते है हम सोचते है की किसी का सहारा मिल जाय तो शायद मै अपने जीवन में कुछ कर सकू आपने अपने भीतर उस शक्ति को विस्मित कर दिया जो जगत का निर्मार्ण कर सकती है आपने अपनी उर्जा को संकुचित कर लिया सारा ध्यान इस बात पर केन्द्रित कर दिया की कही से कुछ मिल जाय और मै बस उसका सहारा लेकर चल पडू अपनी जिमेदारी के दायरे को बहुत कम कर लिया जब दूसरो की कहानिया के बारे गर्व से पड़ते है पर कहानी बनाने की नहीं सोचते है .
त्रिलोक चन्द छाबरा